Struggle to UPSC Rank 54 | मैं खुद से जीता | Hindi Motivational Story #iasmotivation #upsc #ias
मेरा नाम नकुल है। एक छोटा सा नाम, एक छोटा सा शहर, और उससे भी छोटी सोच रखने वाली दुनिया, जहां सपने देखना भी लक्ज़री माना जाता है। मैं इस दुनिया में ऐसा लड़का था जो पढ़ाई में औसत था, बोलने में हिचकिचाता था, और जिसकी खुद की परछाईं से भी पहचान नहीं बन पाई थी। सुबह उठकर कोचिंग जाता, सबसे पीछे की कुर्सी ढूंढता, और हर बार सोचता—"मैं यहां क्यों हूँ?"
लोग कहते थे, "IAS? ये तो गूंगा लड़का है। ये क्या अफ़सर बनेगा?"
मैं हँस देता, क्योंकि लड़ाई दूसरों की बातों से नहीं, उनके यकीन की कमी से थी—जिसे मैंने कभी खुद के ऊपर भी हावी होने दिया था।
एक दिन, घर की सफाई करते वक़्त, मुझे अपनी पुरानी स्कूल डायरी मिली। पन्ने पीले पड़ चुके थे, लेकिन एक लाइन चमक रही थी—"IAS Officer बनूंगा, कसम खाई है।"
मैं उस लाइन को ऐसे घूरता रहा जैसे वो मेरी आत्मा का पुराना पता हो, जिसे मैंने खुद ही मिटा दिया था। शायद उसी दिन कुछ टूट गया… और कुछ जुड़ भी गया।
अगली सुबह मैं पार्क गया। वही सुबह थी, वही शहर था, पर मेरी नज़रें बदल चुकी थीं। वहीं मेरी मुलाकात एक बूढ़े इंसान से हुई, जो एक तरह का रहस्य था—ना नाम बताया, ना घर। बस इतना बोला, “तेरे अंदर वो है जो तू खुद नहीं देख पा रहा।” उस लाइन ने मेरे भीतर किसी खामोश युद्ध का बिगुल बजा दिया।
मैंने रोज़ सुबह उनसे मिलना शुरू किया। बातचीत में कोई मोटिवेशनल भाषण नहीं था, बस छोटे वाक्य जो बड़ी सोच जगा देते थे। “भीड़ का हिस्सा बनना आसान है, लेकिन अपनी राह खुद बनाना तक़दीर बदलता है।”
मैंने कोचिंग में सबसे आगे की सीट चुन ली। डर अब भी था, पर आवाज़ थोड़ी तेज़ हो गई थी।
मगर जिंदगी ने रफ्तार पकड़ ली थी—बड़े भाई की नौकरी चली गई, माँ बुखार में बिस्तर पर पड़ गई, घर का राशन ख़त्म हो गया। उस वक़्त मेरे पास सिर्फ़ दो चीजें थीं—एक टूटी हुई कॉफी मग... और आत्मसम्मान।
मैं दिन में ट्यूशन देता, रात में किताबें पढ़ता, और हर सुबह खुद से बस इतना कहता, “आज एक पन्ना और भर दूंगा उस किताब का, जो मैं खुद बन रहा हूँ।”
एक रात, मैंने खुद को स्टेज पर खड़ा पाया—कोई दर्शक नहीं था, कोई ताली नहीं, सिर्फ़ मैं और मेरी आवाज़, जो डरते-डरते हिम्मत बन रही थी।
फिर अचानक, एक दिन वो बूढ़ा आदमी मुझे बस किताबों का एक सेट देकर चला गया। न कोई अलविदा, न कोई आख़िरी सलाह। जैसे उसने मेरी कहानी का पिछला अध्याय पूरा कर दिया हो—बाक़ी मुझे ही लिखना था।
फिर आया वो दिन—UPSC इंटरव्यू।
पैनल के सामने मैं बैठा था, नीले रंग की शर्ट, हल्के कांपते हुए हाथ, लेकिन आँखों में पहली बार एक ठहराव।
एक सदस्य ने पूछा, "आप खुद को इस ज़िम्मेदारी के काबिल क्यों मानते हैं?"
मैं मुस्कुराया और जवाब दिया:
"क्योंकि मैंने वो लड़ाई जीत ली है, जो सबसे मुश्किल होती है—खुद से।"
आज जब मैं अपने रिज़ल्ट में अपना नाम देखता हूँ—“All India Rank 54 – Nakul Sharma”—तो याद आता है वो पुरानी डायरी, वो टूटी कॉफी मग, माँ की सिलाई मशीन की आवाज़, और वो पार्क की सुबहें।
अब मेरे पास कोई साया नहीं है... क्योंकि अब मैं खुद रोशनी बन चुका हूँ।
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Moral of the Story:
"कभी-कभी इंसान को कोई और नहीं, उसकी ही परछाईं रोकती है।
और जब वो साया साथ चलने लगे—तब समझो, तुम खुद को हरा चुके हो… और जीत तुम्हारी ही है।"
यह उन लाखों युवाओं की आवाज़ है जो खुद से ही जूझ रहे हैं।
नकुल, एक मामूली सा लड़का, जिसकी सबसे बड़ी जंग दूसरों से नहीं, खुद से थी। किताबें, ज़िम्मेदारियाँ, ताने, और आत्म-संदेह से बनी इस लड़ाई में, उसने एक ही रास्ता चुना: "बस रुकूंगा नहीं, तब तक जब तक जीत मेरी न हो।"
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